10 साल में इंदौर दाहोद लाइन की एक भी सुरंग नहीं बना पाया रेलवे
इंदौर। तेज गति से परियोजनाओं के क्रियान्वयन का दावा करने वाला रेल मंत्रालय बीते 10 साल में इंदौर-दाहोद रेल लाइन की एक भी सुरंग नहीं बना पाया है। यह हालत प्रधानमंत्री के गृहराज्य गुजरात से संबंधित रेल परियोजना की है। 205 किलोमीटर लंबी रेल लाइन में से अब तक केवल 50 किलोमीटर का रेल मार्ग ही तैयार हुआ है। जो दो हिस्से तैयार हुए हैं, उनमें भी यात्री ट्रेनों का संचालन नहीं हो पा रहा इसलिए सीधे तौर पर जनता को इससे कोई फायदा नहीं मिल रहा है।
दाहोद...
more... लाइन के तहत 15-16 किलोमीटर लंबी छह सुरंगें बनना हैं। सुरंग का काम तकनीकी रूप से काफी जटिल होता है। रेलवे अफसरों को प्राथमिकता के आार पर यह काम करना था लेकिन इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। परिणाम यह हुआ कि 10 साल में भी जनता को किसी तरह की सुविधा नहीं मिल सकी। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह, तत्कालीन रेल मंत्री लालूप्रसाद यादव के हाथों झाबुआ में 8 फरवरी 2008 को इंदौर-दाहोद और छोटा उदयपुर-धार रेल लाइन परियोजनाओं की आधारशिला रखी गई थी। तब खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई थी कि 2011 तक दोनों रेल लाइनों पर ट्रेनों का संचालन शुरू हो जाएगा। तब काम जल्दी पूरा करने के लिए इंदौर से टीही के 35 किमी और दाहोद से कटवारा के 15 किमी लंबे हिस्से में काम शुरू हुआ था। इस फैसले से लगा था कि दोनों तरफ से काम शुरू करके रेलवे वाकई इस परियोजना को गंभीरता से ले रहा है।
हालांकि, इससे कोई विशेष परिणाम सामने नहीं आए। दूसरी बार उम्मीद तब बंधी जब केंद्र में मोदी सरकार बनी। तब लोगों को लगा कि चूंकि इंदौर-दाहोद और छोटा उदयपुर-धार रेल परियोजनाएं प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य से संबंधित हैं इसलिए इनकी कछुआ चाल बंद होगी लेकिन यह सरकार भी इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं दिखा पाई। 2018 आ गया है। रेलवे ने अंदरूनी रूप से 2022 तक परियोजनाएं पूरी करने का लक्ष्य रखा है जो दूर की कौड़ी लग रहा है।
टीही-पीथमपुर के बीच बनना है पहली सुरंग
दाहोद लाइन की पहली सुरंग टीही और पीथमपुर स्टेशन के बीच बनना है। करीब दो किलोमीटर लंबी इस सुरंग के बनने के बाद ही पीथमपुर और धार तक रेल लाइन पहुंच पाएगी। इसके बनने में कम से कम दो-ढाई साल लगेंगे। अभी तो इसके टेंडर ही नहीं हुए हैं यानी खुद रेलवे अफसरों को नहीं पता कि काम कब शुरू होगा? इसके बाद अन्य सुरंगें धार से झाबुआ के बीच बनेंगी जिनका निर्माण खासतौर पर माछलिया घाट वाले हिस्से में होगा। इतनी सुरंग बनते-बनते न जाने कितने साल लगेंगे क्योंकि इन्हें बनाने के लिए रेलवे को तगड़ा फंड भी खर्च करना होगा।
सुरंग निर्माण सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखना चाहिए
रेलवे बोर्ड पैसेंजर एमिनिटीज कमेटी के सदस्य नागेश नामजोशी का कहना है कि रेल लाइनों के निर्माण के साथ जिन कार्यों में सबसे ज्यादा वक्त लगता है, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर शुरू करना चाहिए। सुरंगों को सबसे पहले बनाया जाना चाहिए क्योंकि रेल लाइन डलने के बाद बिना सुरंग ये जुड़ नहीं पाएंगी। एक सुरंग बनाने का काम लेने में कंपनियों को परेशानी हो सकती है इसलिए अलग-अलग पैकेज में दो-तीन सुरंगों का काम उन्हें दिया जा सकता है।
पीथमपुर के पास बनने वाली सुरंग की ड्राइंग-डिजाइन तैयार
पश्चिम रेलवे के आला अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि रेलवे ने पीथमपुर के पास बनने वाली सुरंग की ड्राइंग-डिजाइन तैयार कर ली है। जल्द ही टेंडर बुलाए जा सकेंगे ताकि निर्माण शुरू हो सके। पूरे प्रोजेक्ट में बनने वाली सुरंगों की लंबाई छोटा उदयपुर-धार रेल लाइन की तर्ज पर कम नहीं की जा सकती क्योंकि दाहोद प्रोजेक्ट की परिस्थितियां अलग हैं।
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